आओ साई के दर पे जन्नत है,
जो भी बार सिर जुका ले शन में भी बिगड़ी बन गई उनकी,
और तकदीर भी सजाये
आओ साई के दर पे जन्नत है
मन में विश्वाश से जो भी आते है श्रद्धा सबुरी से सिर जुकाते है,
हाले दामन को साई भर देते है,
और तकदीर तेरी बनाते है,आओ साई के दर पे संगत है
सुख के सागर का ये खजाना है
शिरडी पावन सा इक नजारा है,
माथे उधि को जो लगाते है,
उनकी तकदीर को सजाते है ,
आओ साई के दर पे संगत है