खींच के कर उघाड़ी साडी कर रहे

द्रोपदी पुकारी भाइयाँ आजा मुरारी रोते रोते,
खींच के कर उघाड़ी साडी कर रहे,
देर कन्हियाँ होते होते,
आजा मोहन आजा मोहन आजा मोहन,

वाह रे विद्याता कौन से दिन ये आज मुझे दिखलाये,
पांचो पति में बल धारी खड़े है नार झुकाये,
कुछ समज ना आई लाज तुहि अब बचाये,
मैं हु शरण में तेरी लाज तेरी ही जाए,
करती दुहाई कान्हा असुवन से मुँह धोते धोते,
खींच के कर उघाड़ी साडी कर रहे,

पुत्र मोह में ससुर हमारे आँखों पे पर्दा चढ़ाये,
भाभी माँ की दाखिल होती कौन इन्हे समजाये,
कौन अपना पराया अपनों ने ही फसाया ,
आज रिश्ते हुए बेघर खेल ऐसा है रचाया,
जाग जा मुरारी केशव रे तू न जाना सोते सोते,
खींच के कर उघाड़ी साडी कर रहे,

दोनों हाथ उठा कर बोली सुन ले बंसी वाले,
तन मन की अब नैया मैंने कर दी तेरे हवाले,
मेरी सुन ले मुरली वाले दुनिया देगी अब मिसाले,
लाज मेरी लूट रही है लाज आके तू बचा ले,
प्रगटे मुरारी लाज जाने न दूंगा खोते खोते,
खींच के कर उघाड़ी साडी कर रहे,
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