ये सब तुम्हारी मेंहर है प्यारे,
ये सब तुम्हारी मेंहर है बाबा, कि अब भी महफिल जमी हुई है,
जहाँ भी देखूँ जिधर भी देखूँ, तुम्हारी मूरत/सूरत पड़े दिखाई,
यहाँ के हर शय में प्यारे बाबा, तुम्हारी ख़ुशबू भरी हुई है,
ये सब तुम्हारी मेंहर है बाबा, कि अब भी महफिल जमी हुई है
जो आँख मूदूँ तो यूँ लगे ज्योँ, तू पास में ही खड़ा हुआ है
ज़मीं से अम्बर तलक फि़ज़ा ये, तेरे ही रंग में रंगी हुई है
ये सब तुम्हारी मेंहर है बाबा, कि अब भी महफिल जमी हुई है
सजल हमारे नयन मगर तू, मधुर मधुर मुस्कुरा रहा है
तेरी मधुर मुसकान से अपनी, अंतर्ज्योति जगी हुई है
ये सब तुम्हारी मेंहर है बाबा, कि अब भी महफिल जमी हुई है ।