मन मस्त फ़कीरी धारी है
अब एक ही धुन जय जय भारत ॥
हम धन्य है इस जगजननी की
सेवा का अवसर है पाया
इसकी माटी वायु जल से
दुर्लभ जीवन है विकसाया
यह पुष्प इसी के चरणोमे
माँ प्राणो से भी प्यारी है ॥
सुन्दर सपने नव आकर्षण
सब तोड चले मुख मोड चले
वैभव महलों का क्या करना
सोते सुख से आकाश तले
साधन की ओर ना ताकेंगे
काँटों की राह हमारी है ॥
ऋषियों मुनियों संतो का तप
अनमोल हमारी थाती है
बलदानी वीरो की गाथा
अपने रग रग लहराती है
गौरवमय नव इतीहास रचे
अब अपनी ही तो बारी है ॥
संपादक:-विजय डिडवानिया
सरदारशहर
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