साधो मैं बैरागन हरी की, साधो मैं बैरागन हरी की, साधो मैं बैरागन हरी की, भूषण वस्त्र सभी हम त्यागे खान पान विसरायो, एह बृजवासी कहत वनवारी मैं दासी गिरधर की, साधो मैं बैरागन हरी की,