जो भजते मुझे भाव से मैं उनका ही बन जाता,
उनका ही बन जाता मैं तो उनका ही बन जाता ,
बिना भाव से खूब पुकारे कभी नहीं मैं आता,
भाव भरी सुन तेरे भगत की मुझसे रहा न जाता,
जो भजते मुझे भाव से मैं उनका ही बन जाता,
शुद्ध हिरदये हो अनन्य मन से मेरा ध्यान लगाता,
उन के सारे योग चेम को मैं ही स्वयं चलाता ,
जो भजते मुझे भाव से मैं उनका ही बन जाता,
सब कुछ कर दे भेट भाव बिन मैं नहीं नजर उठा ता,
करता हु स्वीकार प्रेम से जो इक पुष्प चढ़ाता,
जो भजते मुझे भाव से मैं उनका ही बन जाता,
मुझे नहीं परवाह वस्त्र की नहीं अन्धन चाहता,
जो मेरा बन गया हिरदये से उसको मैं अपनाता,
जो भजते मुझे भाव से मैं उनका ही बन जाता,
कैसा भी दोषी हो मेरा मैं नहीं कभी रिसाता
जो करता अपराध वक़्त का मुझे नहीं सहाता,
जो भजते मुझे भाव से मैं उनका ही बन जाता,
जो मेरी शरणागत आवे आवागमन मिटाता,
भागीरथ आशेल हरी का क्यों उत उत भटकाता
जो भजते मुझे भाव से मैं उनका ही बन जाता,