माखन चुराने आयो रूप पावन लायो
देख यशोदा तेरो नन्द लाला आयो,
मखन नही तेरे मन को चुराने आयो रे नन्द किशोर,
ओ दर्दी आयो रे मखन चोर
कितनो प्रेम से मखन भर के सजाई मटकी साज से,
एसो रखे की पार न पावे बाँधी मन की गाँठ से ,
तेरो लाला खोल दे डोर अब मन तेरा ना रहा रो रो
ओ दर्दी आयो रे मखन चोर
इतनो लाड सी कर के इकठा मखन बनाई सी मलाई सी
घनी देर से राई चला कर लाल गुलाल हुई हाथ से,
बांड फोड़ तेरो नदी में नहा के लिपट लिपट के नदी में नहा के खूब मचाई शोर,
ओ दर्दी आयो रे मखन चोर
हारी मैं हारी बाबा पाँव पड़ी माँ यशोदा
कान पड़कर तेरे पाँव पडू माँ यशोदा,
मखन नही तेरो प्रेम को पाने आयो तेरा किशोर ओ माई,
ओ माई मैं न माखन चोर