जिनके हिरदये सिया राम वसे

जिनके हिरदये सिया राम वसे तिन और का नाम लिया न लिया रे
जिनके हिरदये सिया राम वसे

जिनके घर एक सपूत बहयो तिन लाख कपूत हुआ न हुआ रे
जिनके हिरदये सिया राम वसे

जिन मात पिता की सेवा की तीन तीर्थ वर्त किया न किया रे
जिनके हिरदये सिया राम वसे

जिनके द्वारे पर गंग बहे तिन कूप का नीर पिया न पिया रे
जिनके हिरदये सिया राम वसे

तुलसी दास विचार करे कपटी को मीत किया न किया
जिनके हिरदये सिया राम वसे
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