एक बार चले आओ
इन अंखियों की ज्योति हो तुम
प्राणों के प्रिय मोती हो तुम
घुटनों के बल चल कर आओ
आ जाओ धूल लपेटे तन में
मिट्टी मुख में भर कर आओ
रोते हंसते गिरते पड़ते
पालना छोड़ कर आ जाओ
दधि दूध और माखन मिश्री
जो मन भावे ओ पा जाओ
हम नैन बिछाए बैठे हैं
हे मन मोहन अब आ जाओ
-अर्द्धचंद्रधारी त्रिपाठी