रकत बीज का वध करने को लेकर खप्पर खाली,
छम छम नाच रही माँ काली,
काली काली लट भिखरा के पी के मधु की प्याली,
छम छम नाच रही माँ काली,
जीब लटक रही मुख से बहार नैन से बरसे ज्वाला
छके छुटेदुश्मन दल के देख रूप विकराला
चंड मुंड का मुंड काट के गले में माला डाली
छम छम नाच रही माँ काली,
चाल चाले जब काली मैया घुंघरू छन छन बोले
सुन किलकारी काली माँ की धरती अम्बर धोले
पलक जपक के रन भूमि में वही खून की नाली
छम छम नाच रही माँ काली,
जब गुस्से में आकर माँ ने दुसमन का सिर काटा
एक बूंद न गिरी लहू की सब ख्प्पर में दांता,
लिखे अनाडी परवीन दाता माँ की महिमा निराली
छम छम नाच रही माँ काली,