दिन रैना सब बीते बीते ये कितने घोर
मेरो माखन धरो ही रेह गयो न आये माखन चोर
तुम को ही ढूंढे है ये सारी दुनिया आजा सामने छिपे काहा छलियाँ,
तेरे बिन सांवरियां न मच तो ग्वालन शोर
मेरो माखन धरो ही रेह गयो न आये माखन चोर
पूछता है हम से ये गोकुल सारा
कहा गया है सांवरियां हमारा
ना अब कुछ भी दिखे जो देखू चारो और
मेरो माखन धरो ही रेह गयो न आये माखन चोर
कह्ती हु मैं ये उडती धुल ये,
मिल जाए जो तुझे कान्हा भूल से,
केहना उस छलिये से मोहित बंसल न कोई और
मेरो माखन धरो ही रेह गयो न आये माखन चोर