ओ साथी हारे का केहता जिनको ये संसार है
जिनकी महिमा का कोई भी पाया न पार है
लीले की करे सवारी ये बाबा लख दतारी
खाटू नगरी में है जिसका धाम
मेरा सर्वेश्वर मेरा श्याम
देव जहां में ऐसा दूजा न पाया है
रेहता है संग मेरे बन कर के साया है
हर हाल में मुझे जिताए रोती आँखों को हसाए
गिरने से पेहले लेता है थाम
मेरा सर्वेश्वर मेरा श्याम
जब से समजने लगा इनको ही जाना है
मात पिता भाई इनको ही माना है
चाहे प्रेम हो या नराजी
मैं इनकी रजा में राजी
इनसे ही मेरी सुबह और श्याम
मेरा सर्वेश्वर मेरा श्याम
संवारे के आगे जब से किया है समर्पण
मेहक रहा है मेरा खुशियों से जीवन
हर सास में इनका सुमिरन कर जोड़ करू मैं वंदन
इनके चरणों में मोहित का परनाम
मेरा सर्वेश्वर मेरा श्याम