कृष्ण गोविन्द गोपाल रटते रहो

कृष्ण गोविन्द गोपाल रटते रहो ले लेंगे खबरियां कभी न कभी
प्रेम से नेम से रोज भजते रहो वो करेगे नजरियाँ कभी न कभी
कृष्ण गोविन्द गोपाल रटते रहो

श्याम उसके हुए उनका जो हो गया
श्याम उनको मिले उनमें जो खो गया
मीरा की जैसी मस्ती में चलते चलो तोहे मिलेगे सांवरियां कभी न कभी
कृष्ण गोविन्द गोपाल रटते रहो

भावना के है भूखे मेरे संवारे
सांचे मन से बुला दो सही संवारे
गोपियों की तरहा याद करते रहो
होगी पावन झोपड़ियाँ कभी न कभी
कृष्ण गोविन्द गोपाल रटते रहो

खाली भगतो की जाती कभी टेर न,
देर होती रहे होता अंधेर न
द्रोपती जैसे उनको सुमीर ते रहो
तेरी सुनेगे संवारिया कभी न कभी
कृष्ण गोविन्द गोपाल रटते रहो

प्राण से प्यारे है भगत उनको सदा भगत की बात वो गिरने देते कहा,
नरसी के जैसे बस ध्यान धरते रहो
कर से करुना बदरियाँ कभी न कभी
कृष्ण गोविन्द गोपाल रटते रहो
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