सखी री छैल बिहारी से निगोड़ी लड़ गयी अँखियाँ

सखी री छैल बिहारी से निगोड़ी लड़ गयी अँखियाँ

सखी री छैल बिहारी से,
निगोड़ी  लड़ गयी अँखियाँ,
मनाई लाख ना मानी,
छिछोरी  लड़ गयी अँखियाँ,
सखी री छैल .........

निरखि सखी रूप मोहन का,
दमकती रह गयी अँखियाँ,
श्याम मिलि श्यामल बन जाऊं,
तरसती रह गयी अँखियाँ,
सखी री छैल........

वह छैला कर गया जादू,
कि तकती रह गयी अँखियाँ,
चलाई बान नैनन से,
जिगर में गड़ गयी अँखियाँ,
सखी री छैल............

चहुँ दिसि ठौर ना मोहें,
सखी कैसे कहाँ जाऊँ,
फिरूँ में बाँवरी बनकर,
कि पीछे पड़ गयी अँखियाँ,
सखी री छैल............

भले भव सिंधु में भटकूँ,
मनोहर छवि ना बिसरेगी,
दिवानी मीरा के जैसे,
हृदय में जड़ गयी अँखियाँ,
सखी री छैल.........

भजन रचना: ज्योति नारायण पाठक
वाराणसी
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