मन मोहन कृष्ण मुरार अरे ओ नटखट दुलार क्यों हमसे रूठ गये,
तेरी लीला है अप्रम पार अरे ओ करुणा के भण्डार,
क्यों हमसे रूठ गये,
सूंदर छवि तेरी मन में वसाई,
कैसे सहे कान्हा तोरी जुदाई,
बहे अँखियो से अश्को की धार सुनो ओ जग के पालन हार,
क्यों हमसे रूठ गये,
आके मधुर सी मुरलियाँ सुना दो,
आखियो से मस्ती का रस बरसा दो,
लगी भगतो की दरपे कतार करो अब करुणा की बौछार,
क्यों हमसे रूठ गये,
मोर मुकट गल वेयन्ती माला,
रूप कन्हैया तेरा जग से निराला,
आओ राधा को लेके इक बार,
ये केवल अर्ज करो स्वीकार,
क्यों हमसे रूठ गये,