बोले मन की तरंग रहे सदा सुहागन

पर्व वट सावित्री का मनाये उम्र स्वामी की लम्भी कर आये
सवित्री माँ को ध्याये गे हर दम
बोले मन की तरंग रहे सदा सुहागन

वट वृक्ष की परिक्रमा हम लगाये,
बाँध के लाल धागा दिए हम जलाए
करके जय अर्पण हम करे पूजन
जब तक हो अपनी सांसो में ये दम
बोले मन की तरंग रहे सदा सुहागन

करे तेरी पूजा और कहे दिल मेरा
खुशियों में अपने छाए कभी न अँधेरा
करू ये कामना सब सुखी हॉवे माँ
कभी छु भी न पाए कोई गम
बोले मन की तरंग रहे सदा सुहागन
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