( बधईया बाज रही )
धुनः मथे ते चमकन बाल अज मेरे बनड़े दे
हो रहा मंगलाचार, बधईया बाज रही।
बाज रही बधईया बाज रही-हो रहा मंगलाचार।।
देवउठनी एकादशी आई,
कार्तिक-शुक्ल सुकाल-बधईया.....
बनी दुल्हनियां तुलसां रानी,
दुल्हा हरि सरकार- बधईया.....
देवी देव बने बाराती,
नाच रहा संसार-बधईयां.....
बाज रहे बाजे शहिनाईयां,
हो रही जय जयकार-बधईया......
घुंगट में वृंदा शरमावे,
हरि को हर्ष आपार-बधईया......
कहै ‘‘मधुप’’ यह पावन गाथा,
देती है फल चार-बधईया..... ।