ना ऐसा दरबार,
और ना ऐसा श्रृंगार,
और ना है लखदातार,
बाबा श्याम धणी जैसा,
ओ बाबा श्याम धणी जैसा।।
बाबा मेरे शीश के दानी,
खाटू नगरी में बिराजे,
घर घर में ज्योत जले है,
दुनिया में डंका बाजे,
इनकी महिमा, सबसे न्यारी,
इनकी महिमा, सबसे न्यारी,
पल में भरते भण्डार,
ना ऐसा दरबार,
और ना ऐसा श्रृंगार,
और ना है लखदातार,
बाबा श्याम धणी जैसा,
ओ बाबा श्याम धणी जैसा।
जो हार के खाटू आता,
सीने से उसको लगाते,
दे मोरछड़ी का झाड़ा,
सोइ तक़दीर जगाते,
नाँव थोड़ी सी जो डोले,
नाँव थोड़ी सी जो डोले,
कर देते भव से पार,
ना ऐसा दरबार,
और ना ऐसा श्रृंगार,
और ना है लखदातार,
बाबा श्याम धणी जैसा,
ओ बाबा श्याम धणी जैसा।
मेरे श्याम से लगन लगा लो,
गुलशन जीवन का खिलेगा,
जो कभी मिला ना पहले,
तुमको वो सुख भी मिलेगा,
तेरा सोनी कैसे भूले,
तेरा सोनी कैसे भूले,
बाबा तेरे ये उपकार,
ना ऐसा दरबार,
और ना ऐसा श्रृंगार,
और ना है लखदातार,
बाबा श्याम धणी जैसा,
ओ बाबा श्याम धणी जैसा ॥