सुदामा कर रहे मन में सोच

सुदामा कर रहे मन में सोच,
महल यहाँ कहाँ से आयौ रे॥
कहाँ से आयौ रे,
महल यहाँ कहाँ से आयौ रे॥
कही मार्ग मैं गयौ रे भूल,
लौट फिर द्वारिका आयौ रे॥

गाँव छोड़ क्यों द्वारिका आयौ,
मैं बामन कहु धोखे मैं आयौ,
कोरी खातिर करी कृष्ण ने,
फिर लौटायौ रे॥
सुदामा कर रहे मन में सोच,
महल यहाँ कहाँ से आयौ रे.......

इतै रही मेरी टूटी झुपड़िया,
यहीं पै मेरी टाट गुदरिया,
उलट पुलट कें काऊ नप ने,
महल बनायौ रे॥
सुदामा कर रहे मन में सोच,
महल यहाँ कहाँ से आयौ रे.......

मेरी बामनी भोली भारी,
जानें कित गई विपदा की मारी,
अतौ पतौ मोइ कोई ना बतावै रे,
मैं दुखियारौ रे॥
सुदामा कर रहे मन में सोच,
महल यहाँ कहाँ से आयौ रे.......

देख बामनी दौड़ी आई,
पति कूं सबरी कथा सुनाई,
श्री गिरधर ने किरपा करके,
दर्द मिटायौ रे॥
सुदामा कर रहे मन में सोच,
महल यहाँ कहाँ से आयौ रे॥
कहाँ से आयौ रे,
महल यहाँ कहाँ से आयौ रे॥
कही मार्ग मैं गयौ रे भूल,
लौट फिर द्वारिका आयौ रे॥
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