जो शांत होके गुंजता,
हां मैं ही तो वो शोर हुं,
आकाश हुं पाताल भी,
मैं सुखसम हुं विशाल भी,
शिव हुं,
शिव हुं....
पतन हुं मैं विकास हूं,
तमाश हूं मैं प्रकाश हूं,
रुद्र हुं निगल लू सब,
हां मैं ही वो विनाश हूं,
मैं खंड हुं मैं अखंड भी
प्रचंड हुं मैं,
मैं ही शांति,
मैं शिव हुं,
मैं ही तो हुं,
हां मैं शिव हुं,
शिव हुं,
शिव हुं,
शिव हुं....
मैं घोर हु मै अघोर हूँ,
वीभत्स हूँ मै विभोर हूँ,
मैं पूर्ण हूँ मैं शेष हूँ,
स्मगरा माई हाय विशेष हुण्,
जगत का हूं आधार मैं,
हां मै ही तू महेश हूँ,
हां मै ही तू महेश हूँ,
मैं शिव हुं,
मैं ही तो हुं,
हां मैं शिव हुं,
शिव हुं,
शिव हुं,
शिव हुं....
मैं आदि हूँ मैं चींटी हूँ,
मैं राख हुन ज्वलंत हूँ,
सिरजन मैं हुन मैं काल हुं,
हूँ सुंदर मैं विक्राल हूँ,
जो मृत्यु मोक्ष बाँटता,
हूँ मैं ही तो महाकाल हूँ।