हार के तेरे दरबार बैठा हूँ

दुरंगे इस जमाने से,
मैं हिम्मत हार बैठा हूँ,
ठोकरें खाके दर दर की,
मैं हो लाचार बैठा हूँ,
चूर सपने हुए सारे,
चली जब वक्त की आंधी,
हार के श्याम बाबा मैं,
तेरे दरबार बैठा हूँ,
हार के श्याम बाबा मैं,
तेरे दरबार बैठा हूँ…..

जिन्हे हँसना सिखाया था,
उन्होंने ही रुलाया है,
जिनके वास्ते हर पल,
मैंने सबकुछ लुटाया है,
पौंछ आँशु हमेशा ज़ख्म पर,
मरहम लगाया है,
मुसीबत के समय में साथ,
हँसकर के निभाया है,
आज उन सब की नज़रों में,
बना बेकार बैठा हूँ,
हार के श्याम बाबा मैं,
तेरे दरबार बैठा हूँ……..

फंसी मजधार में नैया,
किनारा आप बन जाओ,
है चारो ओर अँधियारा,
सितारा आप बन जाओ,
है पांडव कुल के उजियारे,
बड़ी महिमा निराली है,
तो बेबस बेसहारे का,
सहारा आप बन जाओ,
लुटा कर लाज की पूंजी,
सरे बाजार बैठा हूँ,
हार के श्याम बाबा मैं,
तेरे दरबार बैठा हूँ……

बड़ी आशा लगी तुमसे,
मुझे तुम ही उबारोगे,
मेरी कश्ती के बन माँझी,
किनारे पर उतारोगे,
कृपा दृष्टि से जिस दिन आप,
रजनी को निहारोगे,
मेरे जीवन के रखवाले,
ये जीवन तुम संवारोगे,
भरोसे छोड़ कर तेरे,
मैं अब पतवार बैठा हूँ,
हार के श्याम बाबा मैं,
तेरे दरबार बैठा हूँ….

दुरंगे इस जमाने से,
मैं हिम्मत हार बैठा हूँ,
ठोकरें खाके दर दर की,
मैं हो लाचार बैठा हूँ,
चूर सपने हुए सारे,
चली जब वक्त की आँधी,
हार के श्याम बाबा मैं,
तेरे दरबार बैठा हूँ,
हार के श्याम बाबा मैं,
तेरे दरबार बैठा हूँ…..
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