राम कुछ करो ऐसा,
फिर तेरी शरण आऊँ,
राम कुछ करो ऐसा,
फिर तेरी शरण आऊँ,
जब कभी जन्म लूँ तो,
जन्म अवध में पाऊँ,
राम मेरी आपसे,
विनती है इतनी,
बस इतनी सी है आशा,
जन्म जन्म हरी सेवा करूँ मैं,
मन में यही अभिलाषा……
तन पक्षियों का मुझको,
गर प्रभु जी मिल जाये,
बैठ कर मुंडेर पर तेरी,
बस तेरा ही गुण गाऊं,
राम मेरी आपसे,
विनती है इतनी,
बस इतनी सी है आशा,
जन्म जन्म हरी सेवा करूँ मैं,
मन में यही अभिलाषा…….
तेरे अवध में रहूं,
तन मिले जो जलचर का,
तेरे अवध में रहूं,
तन मिले जो जलचर का,
सरयू की लहरों में,
लहर बन के लहराऊँ,
राम मेरी आपसे,
विनती है इतनी,
बस इतनी सी है आशा,
जन्म जन्म हरी सेवा करूँ मैं,
मन में यही अभिलाषा…….
पत्थर बनूँ तो मेरी,
इतनी गुज़ारिश है,
पत्थर बनूँ तो मेरी,
इतनी गुज़ारिश है,
मंदिर की चौखट पे,
तेरी मैं गढ़ा जाऊँ,
राम मेरी आपसे,
विनती है इतनी,
बस इतनी सी है आशा,
जन्म जन्म हरी सेवा करूँ मैं,
मन में यही अभिलाषा……..
बनूँ गर पशु तो घूमूं,
कौशल की गलियों में,
फूल गर बनूँ कुलदीप,
तेरे दर को महकाऊँ,
राम मेरी आपसे,
विनती है इतनी,
बस इतनी सी है आशा,
जन्म जन्म हरी सेवा करूँ मैं,
मन में यही अभिलाषा……