चढ़ी जा निर्गुण घाटी मन तु चढ़ी जा निर्गुण घाटी,
कोई नही थारो संघाति मन तु चढ़ी जा निर्गुण घाटी.....
खय ले रे पी ले तु लय ले रे दय ले, योय थारा जीव को साथी,
राम नाम को सुमरण करी ले,
याही की बांधी ले ताटी रे मन तु चढ़ी जा निर्गुण घाटी.....
भाई बंधु थारो कुटुम कबिलो अय ने बठीगा थारा नाती,
समय बखत पर काम नी आवे,
देखी ने फाटे छाती रे मन तु चढ़ी जा निर्गुण घाटी.....
यमराजा ने दूत हो भेज्या अय ने बठीगा थारी छाती,
मार मार थारा प्राण निकाले,
देह की कर दे माटी रे मन तु चढ़ी जा निर्गुण घाटी......
कहे गुरु सिंगा सुनो भाई साधु यो पद हे निर्वाणी,
ये पद की कोई करो रे खोजना,
सद्गुरु लय ले संघाती रे मन तु चढ़ी जा निर्गुण घाटी......