भाव का भूखा हूँ मैं, बस भाव ही एक सार है |
भाव से मुझ को भजे तो, उसका बेडा पार है ||
अन्न धन अरु वस्त्र भूषण, कुछ न मुझको चाहिए |
आप हो जाये मेरा बस, पूरण यह सत्कार है ||
भाव बिन सुना पुकारे, मैं कभी सुनता नहीं |
भाव की एक टेर ही, करती मुझे लाचार है ||
भाव बिन सब कुछ भी दे तो, मै कभी लेता नहीं |
भाव से एक फुल भी दे, तो मुझे स्वीकार है ||
जो भी मुझ मे भाव रख कर, आते है मेरी शरण |
मेरे और उस के ह्रदय का, एक रहता तार है ||