महाराज सिंगाजी संत महाराज सिंगाजी संत,
ज्ञान की बाजी नौबत महाराज सिंगाजी संत.....
ब्रह्मगिर को हुआ आचरज, कहो कोन भया रे सामरथ,
मनरंग को साकित किया, जेने बता दिया रे दीदार,
अनुभव की करता बात, महाराज सिंगाजी संत.....
यो ज्ञान थो रे गुपुत, कहो किनने कियो रे प्रकट,
शंकर ब्रह्मा सा रे उलझाया, उनने भी पार नही पाया,
निर्गुण की करता बात, महाराज सिंगाजी संत.....
गुरु में क्या जानू रे गपलत, ऐसो होयगा सामरथ,
एक दिन दियो थो रे उपदेश जेने देख लियो रे सब जुगत,
सिंगा भया जागती जोत, महाराज सिंगाजी संत....
जिनका पूण्य पुरबला जागा, अनुभव का मारग लागा,
जेने मन मुवासी खे मारा, वो भूली गया दस द्वार,
वहां परचा हुआ आचरज, महाराज सिंगाजी संत.....
सुन दल्लू पति मोरे भाई, कछु कहूं कहा नही जाय,
मोखे गुरु मिल्या रे सुखदाई, मोखे सहज मुक्ति बताई,
जेने दिया पदारथ हाथ, महाराज सिंगाजी संत.....