गंगा अष्टकम्

सुढ़ंग-अंग-भांगिनि प्रसंग-संग-शोभिते
भुजंग-छंद-छन्दिनि भुवना-शोभा-वर्धिते
अनंग-भंग-मालिनि विष्णुसेबे-सदारते
सर्व-कल्मश-नाशिनि हर-हर-गंगामाते ।। १ ।।

सुनील-सुढ़ल-जल-नील-अनले-भाषिते
प्रचंड-तांडव-शिव-शीरीशाधारा-प्लाबिते
संचित-संस्थित-कर्म-भस्म-सर्वस्व-कल्पिते
सर्व-कल्मश-नाशिनि हर-हर-गंगामाते ।। २ ।।

आनंद-कंद-कंदरे सुनंद-छंद-छन्दिते
स्वछंद-छंद-छन्दिनि पापिनाम्-गर्व-खंडिते
कल-कल-कल-नादे सकल-ताप-भांजिते
सर्व-कल्मश-नाशिनि हर-हर-गंगामाते ।। ३ ।।

शंकर-ऋण्ड-मंडिनि विश्व-ब्रह्मांडे-पूजिते
हरिपाद्य-तरंगिणि तरंग-अंग-भांगिते
सुषमा-शोभा-शोभिनि देव-मुनींद्र-वंदिते
सर्व-कल्मश-नाशिनि हर-हर-गंगामाते ।। ४ ।।

धगधगधगज्वल प्रज्जल-शिखा-मंडिते
पतितानलपावनि अवनि-धरा-विष्मिते
महाभैरवनादिनी सुनाद नादे शब्दिते
सर्व-कल्मश-नाशिनि हर-हर-गंगामाते ।। ५ ।।

हिमाचलसुनंदिनि हिमशिखरेसंस्थिते
गिरिमंडलगामिनि विष्णुपादब्जासंभूते
शिवसङ्गमदायिनि यमुनासंगमेंस्थिते
सर्व-कल्मश-नाशिनि हर-हर-गंगामाते ।। ६ ।।

सर्वकामार्थदायिनि सरस्वतीसमायुक्ते
त्रिलोकपथगामिनि सिद्धियोगनिसेविते
राममिलनदर्शिनि आत्मारामेसदास्थिते
सर्व-कल्मश-नाशिनि हर-हर-गंगामाते ।। ७ ।।

ब्रह्मरन्ध्रनिवासिनि ब्रह्मरन्ध्रसमुद्भूते
उमासपत्नितरूणि मयूरारूढसंभूते
महावैष्णवीरूद्राणि रुद्रमंडलमंडिते
सर्व-कल्मश-नाशिनि हर-हर-गंगामाते ।। ८ ।।

कलाकलाधरधरा कलाधरअलंकृते
तापत्रयविनाशिनि विरिंचिकलसेस्थिते
वेदवदान्यामेदिनी भेदिनीधराझंकृते
परमेश्वरी जननि श्रीकृष्णदासस्यमाते ।। ० ।।

।। इति श्रीकृष्णदासः विरचित गंगा अष्टकम् संपूर्णम् ।।
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