मैं ना था किसी काम का,
बन ना सका मैं श्याम का,
पर इसने परबंध किया है,
मेरे हर आराम का,
कभी मैं देखू खुद को,
कभी मैं देखूं इनकी रहमत,
हम जैसों के लिए उठाता,
कौन है इतनी जहमत,
जिसका कोई वजूद ना होता,
वो बन जाता काम का,
मैं ना था किसी काम का,
बन ना सका मैं श्याम का......
देखी कई अदालत,
श्याम सी देखी ना कोई अदालत,
पहली बार में न्याय चुकता,
करनी ना पड़ती वकालत,
न्याय सदा ही सांचा होता,
खाटूवाले श्याम का,
मैं ना था किसी काम का,
बन ना सका मैं श्याम का.....
जिनका कोई नही है अपना,
श्याम को वो अजमाले,
सिर पे हाथ रहेगा श्याम का,
श्याम भजन तू गाले,
ऐसा झूमेगा पीकर तू,
श्याम नाम के जाम का,
मैं ना था किसी काम का,
बन ना सका मैं श्याम का......