दोहा।
( क्या इस आंगन के कोने में मेरा कोई स्थान नहीं,
अब मेरे रोने का पापा तुमको बिलकुल ध्यान नहीं,
बेटी चली पराए देश,बेटी चली पराए देश,
पंख लगाकर उड़ चली, धर चिड़िया का भेष।। )
सुनी आंखे ताकती, महल अटारी द्वार,
आज पिघलती दिखती, पत्थर की दीवार,
बेटी चली पराए देश......
घड़ी विदा की है खड़ी, केवल दो पल दूर,
मुखड़े पर मुस्कान है, आंखों में है पूर,
बेटी चली पराए देश......
दे आशीष ये चाहते,बंधु सखा मां बाप,
जहां रहे सुख से रहे, रहे दूर संताप,
बेटी चली पराए देश, बेटी चली पराए देश,
पंख लगाकर उड़ चली, धर चिड़िया का भेष......
डॉ सजन सोलंकी।।