तर्ज़ :- दिलदार कन्हैया ने
मेरे श्याम की महिमा को कोई जान ना पाया है,
जिसने माना तुझको उसने अपनाया है.....
वो नरशी भक्त तेरा टूटी गाड़ी लेके चला,
सवा सवा मण का तूने नानी का भात भरा,
गाड़ी हांके जिसने सारथी बनाया है,
जिसने माना तुझको उसने अपनाया है.....
वो भक्त सुदामा था जिसके तू गले से मिला,
मुठिका चावल की ली झुपड़ा भी महल था बना,
तेरे ही चलाये चले घर जिसने बनाया है,
जिसने माना तुझको उसने अपनाया है......
वो राजमहल राजा वनवाशी बन के चला,
सबरी के घर जाके उसका भी दास बना,
“कविराज” के भी घर आ उसने भी बुलाया है,
जिसने माना तुझको उसने अपनाया है.......
“आशीष जोशी (कविराज)”