पंचम स्कन्द माता माँ ,नवदुर्गा अवतार।
पंचम स्कन्द माता माँ ,नवदुर्गा अवतार।
पंचम नवरात्र इसी ,रूप का हो दीदार।।
सनतकुमार स्कन्द की ,पार्वती जो मात।
स्कन्द माता नाम से ,है विश्व विख्यात।।
अति कोमल कमलासना ,सुंदरता की खान।
सूर्यलोक की अधिष्ठात्री ,देती है यश मान।।
दाएं हाथ स्कन्द है ,बाएं कमल का फूल।
चतुर्भुजी सिंहवाहिनी ,पकड़ा हाथ त्रिशूल।।
दुष्टजनों को मारती ,करती भगतन प्यार।
शरणागत की अम्बिका ,देती विपदा टार।।
बाल स्कन्द गोदी लिए,ममता माँ बरसाए।
बाल जान इस जगत को ,मैया लाड लड़ाये।।
माता शिशु स्कन्द की ,करे बाल कल्याण।
मंदबुद्धि और मूढ़ जन ,होते चतुर सुजान।।
भोग लगावे दूध का ,रस अमृत बरसावे।
इच्छापूर्णी भगवती ,सब की आस पुराए।।
"मधुप" स्कंदमाता दरस ,सब सुखों का सार।
गावो कीर्तन नाम का ,बोलो जय जयकार।।