गीता जी की आरती

गीता जी की आरती

जय भगवद्गीते ,मैया जय भगवद्गीते।
कर्म ज्ञान भक्ति की, गंगा सुपुनीते - जय......

धर्म अधर्म के रण में ,जब अर्जुन डोले।
गीता ज्ञान रहस्य यदुनंदन खोले - जय......

श्रीकृष्ण मुख निकली ,वेदमयी वाणी।
ग्रन्थ शिरोमणि गीता ,माता कल्याणी - जय......

ब्रह्म-योग ब्रह्म-विद्या ,मन को वश में करे।
आतम ज्ञान बढ़ावे ,पाप त्र्यताप हरे - जय......

सत्य धर्म ईश्वर की ,भक्ति सिखलावे।
कर्तव्य नीति निष्ठा ,मार्ग दिखलावे - जय......

कुरुक्षेत्र में प्रगटी ,वीरों की माता।
करे अनुसरण जो इसका ,हरि दर्शन पाता - जय......

मोह शोक भय हारी ,विघ्न विकार हरे।
जीवन जोत जगावे ,दूर अन्धकार करे - जय......

कहत ‘‘मधुप’’ कर वन्दन ,आरती जो गावे।
बल भक्ति यश कीर्ति ,मुक्ति वर पावे - जय...... ।
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