सुनकर आया श्यामधनी तुम सबके काम बनाते हो
हार के जो भी दर पर आया उसको सेठ बनाते हो
मेरे रोज पड़ोसी बोले हम श्याम दर पर जाते हैं
खाटू जाकर के बाबा को हम सुंदर भजन सुनाते हैं
हम सुंदर भजन सुनाते हैं
इतने से काम के बदले तुम , भक्तों पर माल लूट आते हो
हार के आया जो भी दर पर उसको सेठ बनाते हो
मैंने सोच लिया था पहले अब के ग्यारस पर जाऊंगा
मेरा जाते ही काम बनेगा जब अर्जी वहां लगाऊंगा
जब अर्जी श्याम लगाऊंगा
मुझे लगे हैं श्याम धनी तुम, हो... मेरी बारी पे देर लगाते हो
हार के आया जो भी दर पर उसको सेठ बनाते हो
मैं कितनी बार ही आया अब मेरा काम बना दे तू
जल्दी से झोली भर दे काहे नखरे दिखलावे तू
काहे नखरे दिखलावे तू
भगत तेरा दर-दर भटके, हो... तुम बैठे मौज उड़ाते हो
भजन लेखक व गायक
गोपाल प्रजापति मेरठ
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