त्रिकाल दर्शी त्रिलोक स्वामी

त्रिकालं दर्शी त्रिलोक स्वामी, त्रिपुंड धारी त्रिअक्षयकंबक,
नृत्य गायन कला के स्वामी,
हे धर्म पालक अधर्म नाशक।।

है चल अचल में शवी तुम्हारी,
तुम आत्मा हो परमात्मा हो, सृवेष तुम हो करुणेश तुम हो, है भुल हम सब तुम ही शमा हो।
त्रिकाल दर्शी..

है चंद्र मस्तक जटा में गंगा,
है संगी साथी भव्य निशाचर,
है कंठ शोभा सर्पों की माला, त्रिशूल कर में कटी बाघाम्बर।
त्रिकाल दर्शी..

अजात शत्रु हो मित्र सबके,
पवित्रता के आधार‌ तुम हो, मृत्युंजय तुम हो तुम्हीं हो अक्षय,
तुम ही सनातन ऊंकार तुम हो।
त्रिकाल दर्शी..

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