उलझ मत दिल बहारों में,
बहारों का भरोसा क्या ।
सहारे टूट जाते हैं,
सहारों का भरोसा क्या ।।
तमन्नायें जो तेरी हैं,
फुहारे हैं ये सावन की ।
फुहारे सूख जाती हैं,
फुहारों का भरोसा क्या ।।
दिलासे जो जहाँ के हैं,
सभी रंगीं बहारें हैं।
बहारे रूठ जाती हैं,
बहारों का भरोसा क्या ।।
तू इन फूले गुब्बारों पर,
अरे दिल क्यों फिदा होता ।
गुब्बारे फूट जाते हैं,
गुब्बारों का भरोसा क्या ।।
तू सम्बल नाम का लेकर,
किनारों से किनारा कर ।
किनारे टूट जाते हैं,
किनारों का भरोसा क्या ।।
तू अपनी अक्लमंदी पर,
बिचारों पर न इतराना ।
जो लहरों की तरह चंचल,
विचारों का भरोसा क्या ।।
परम प्रभु की शरण लेकर,
विकारों से सजग रहना ।
कहाँ कब मन बिगड़ जाये,
विकारों का भरोसा क्या ।।
भजन रचना : पथिक जी महाराज ।
स्वर : दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज ।