मोरे कान्हा मैं जाऊं तोपे वारी ,
मोर मुकुट बंशी बनमाला,
तोरी अद्भुत रूप निहारी ,
मोरे कान्हा मैं जाऊं तोपे वारी,
तोड़ी जग के झूठे बंधन,
अब आई शरण तिहारी,
मोरे कान्हा मैं जाऊं तोपे वारी,
मोरे मन मन्दिर में बस जा कान्हा,
चाहूँ हर पल तोहें निहारी,
मोरे कान्हा मैँ जाऊं तोपे वारी,
भव से पार लगा दो कान्हा,
अब बिनती सुनो हमारी,
मोरे कान्हा मैं जाऊं तोपे वारी ,
मोरे कान्हा मैँ जाऊं तोपे वारी,
रचना : ज्योति नारायण पाठक
वाराणसी