अब तो कुछ चेत मेरे भाई ।
अब तो कुछ चेत मेरे भाई ।
खेल कूद में बचपन बीता, व्यर्थ में समय गँवाई ।। अब तो कुछ....
निद्रा भोजन भोग व भय में, हर योनी को बिताई ।
लख चौरासी योनि भटककर, फिर मानव तन पाई ।। अब तो कुछ....
दुर्लभ नर तन पाकर वन्दे, क्यों है पाप कमाई ।
काम वासना की आँधी में, ज्ञान की ज्योति बुझाई ।। अब तो कुछ....
नव यौवन को भोग में खोया, वृद्धावस्था आई ।
कान्त इन्द्रियाँ शिथिल पड़ गयीं, फिर भी समझ न आई ।। अब तो कुछ....