करता हूँ एक विनती ,
तुमसे ओ मेरे श्याम |
दरबार ये ना छूटे ,
संकट हो या आराम ||
जब क्रोध में आऊँ तो ,
तुम शीतलता देना |
जब हो जाऊँ मैं कठोर ,
थोड़ी कोमलता देना |
न आए अहम कभी ,
प्रभु रखना थोड़ा ध्यान |
सेवा ये ना छूटे ,
चाहे दुख हो या आराम ||
जब पड़ जाऊँ कमजोर,
प्रभु हाथ पकड़ लेना |
अंधियारा हो घनघोर,
बाँहों में जकड़ लेना |
ना चाहूँ अधिक लेकिन,
दे पाऊँ दिन को दान |
विश्वास ये ना टूटे,
संकट हो या आराम ||
व्याकुल हो जाऊँ तो,
तुम धीर बँधा देना |
सत्पथ से भटक जाऊँ तो,
तुम राह दिखा देना ||
मन में ना आए बैर,
हाथों से अच्छे का |
रिश्ता ये ना टूटे,
संकट हो या आराम ||
जब अंतकाल आए,
थोड़ी दया दिखा देना |
‘गोविंद’ कहे मोहन-सी,
एक झलक दिखा देना |
क्षण भर भी दर्शन पाकर,
हो जाएगा कल्याण |
दरबार ये ना छूटे,
संकट हो या आराम ||
करता हूँ एक विनती ,
तुमसे ओ मेरे श्याम |
दरबार ये ना छूटे ,
संकट हो या आराम ||
लिरिक्स् : गोविंद दमानी