ओ वीणेवाली, दया कर दानी,
दो ज्ञान महारानी ।
तू अपने भगत को,
अंधकार से उबारो माँ जगत को ।।
ओ माता मेरी, शरण में हूँ तेरी,
न कर अब देरी ।
तू अपने भगत को,
अंधकार से उबारो माँ जगत को ।।
मैंने सुना है, ज्ञान देती हो सबको,
फिर भी ज्ञान, नहीं देती ।
मैंने सुना है राग तुमने बनाया,
फिर क्यों राग नहीं देती ।।
ओ स्वर ज्ञान को, देने वाली,
सबकी वीणेवाली ।
ओ माँ रानी, तू ज्ञान की दानी,
हे शारदे भवानी ।
तू अपने भगत को,
अंधकार से उबारो माँ जगत को ।।
ओ वीणेवाली...
जग में है छाया, अज्ञान जननी,
आओगी कि नहीं मइया ।
बीच भँवर में, मैं हूँ फँसा माँ !
डूबती मेरी नइया ।।
ओ दुःखियों को, तारने वाली,
पार लगाने वाली ।
हे कल्यानी, तू है बड़ी दानी,
न कर नादानी ।
तू अपने भगत को,
अंधकार से उबारो माँ जगत को ।।
ओ वीणेवाली...
अज्ञान से है, बढ़ा पाप जननी,
ज्योति ज्ञान की बिखराओ ।
अज्ञानी है कान्त, करता नादानी,
माया से ना भरमाओ ।।
ओ माया को, हरने वाली,
ज्ञान को देने वाली ।
हे दयानी, हे शारदे भवानी !
हे जग कल्यानी ।
तू अपने भगत को,
अंधकार से उबारो माँ जगत को ।।
ओ वीणेवाली...
भजन रचना : दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज ।
स्वर : आलोक जी ।