तर्ज: जिंदगी की न टूटे लड़ी..
श्याम सर पे मुसीबत पड़ी,
तू फिरा दे, तू फिरा अपनी मोरछड़ी
खाटू वाले उम्मीदे न तोड़ो,
तेरी महिमा सुनी है बड़ी
इन आँखों के पानी का क्या
यह तो दर-दर पे बह जाते है,
दर्द की तो जुबां ही नही,
कैसे अपनी सुना पाते है ।
आंखों से बहते, बन के लड़ी
बाबा, तेरे बिना, दुख हरे कौन मेरा ,
हमने भी अब ये ठाना है श्याम,
खाली न लौट जाएंगे हम
मेरी झोली जो भर जाएगी,
बार-बार भी आएंगे हम
काट दे तू ये दुख की घड़ी ।
तू फिरा दे....
मैं तो दर-दर भटकता फिरू,
श्याम अपनी तरफ मोड़ ले,
प्रीत का कोई नाता मोहन,
दास 'विष्णु' से तू जोड़ ले ,
बांध कर तू, कोई हथकड़ी ।
तू फिरा दे...
लेखक: विष्णु कुमार सोनी, कानपुर