परीक्षा कब तक लोगे नाथ

अंधियारे में कहो कौन थामेगा मेरा हाथ।
बहुत हो चुका और परीक्षा कब तक लोगे नाथ।

चलता हूं तो कांटों पर ही चलना पड़ता है।
हर पल हर दम अंगारों में जलना पड़ता है।
रोज मुसीबत नया रूप धरकर आ जाती है,
रोज नए सांचे में मुझको ढलना पड़ता है।
बोलो कब तक ऐसे ही सहने होंगे आघात।
बहुत हो चुका और परीक्षा कब तक लोगे नाथ।

सच के पथ पर चला हमेशा तेरा ध्यान लगाया।
पर लगता है जैसे तूने मुझको कहीं भुलाया।
तेरी शरण छोड़कर बाबा बता कहां मैं जाऊं?
दुख का बादल मेरे सिर पर क्यों इतना गहराया।
कब तक और भटकना होगा मुझको दिन और रात
बहुत हो चुका और परीक्षा कब तक लोगे नाथ।

सहते-सहते संकट अब तो टूट चुकी है आस।
करुणा कर दो करुणासागर हार चुका है दास।
भक्त अगर मुश्किल में हो तो आते है भगवान,
तुम न सुनोगे तो बतलाओ कौन सुने अरदास।
तुमसे कहां छुपे हैं बाबा मेरे ये हालात।
बहुत हो चुका और परीक्षा कब तक लोगे नाथ।

© गौरव गर्वित