कल श्री जी के महलों में मैं बैठी थी भाव में

तर्ज़:- अखिंयों के झरोखों से

कल श्री जी के महलों में, मैं बैठी थी भाव में
थोड़ा सा परदा हटा, मेरे आंसू निकल आए
कल श्री के महलों में...

  1. मुझसे बोली किशोरी जू,क्यों रोनें लगी है तूं
    मैं साथ हुं धीरज काहे,फिर खौनें लगी तूं
    उनकी ममता निरख़ करके,मेरी जिहवा अटक गई
    मैं कुछ बोल नहीं पाई,मेरे आंसू निकल आए
    कल श्री जी के महलों में...

  2. मैं बोली मैं हार गई, जग निर्मोही जीत गया
    तुम आई नहीं हे किशोरी जू, मेरा जीवन बित गया
    श्री जी उठके सिंघासन से,मेरी गोदी में आ गई
    थोड़ा सा शरमाई,मेरे आंसू निकल आए
    कल श्री जी के महलों में...

  3. मेरी ठोडी पकड़ कर के,मेरी अंखियों में देखकर
    जानें कैसा इश़ारा किया सखी,मेरी मस्तक की रेख पर
    अह्लाद प्रगट हो गया,मुझे कम्पन सा होने लगा
    मैं कुछ समझ नहीं पाई,मेरे आंसू निकल आए
    कल श्री जी के महलों में...

  4. फिर ऐसा लगा मुझको,मैं उड़ पहुंचीं सघनवन में
    यहां अष्टसखी संग राज रही,श्यामा जू निकुंजों में
    ललिता जू क़रीब आई,मेरी पकड़ी कलाई थी
    हरिदासी तूं कब आई,मेरे आंसू निकल आए
    कल श्री जी के महलों में...

    बाबा धसका पागल पानीपत
    संपर्कंसुत्र-7206526000
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