तर्ज - आज के इस इंसान को क्या हों गया
आज का हर इंसान राम को खोज रहा
राम से राम होनें में राम ने क्या सहा
राम बसे है रौम रौम में राम बसे है धरा व्योम में
राम बसे है संत संत में राम बसे पुरे अनंत में
राम तो कण कण में ही व्याप्त है राम शुरु है और समाप्त है
राम नहीं किसी एक ही दल के राम तो है निर्धन निर्बल के
नहीं मिलतें है राम हिंसक नारो में ...
राम मिलेंगे मजदूरों के सहारो में ...
राम मिलेंगे पुष्प खार में राम मिले पतझड़ बहार में
राम मिलेंगे तुमको वन में राम मिलेंगे विरल सघन में
राम मिलगे हर एक जीव में राम मिलें कंकर और शिव में
राम मिलेंगे पुण्य हेतु मे राम मिलेंगे रामसेतु मे
राम मिलेंगे राह देखते चेहरों में....
राम मिलेंगे शबरी माँ के बेरो मे....
राम मिलेंगे धुप छाव मे राम मिलें केवट कीं नाव मे
राम रमे निषाद के मन मे राम बसे दशरथ चिंतन मे
राम वैदेही कीं आस मे राम बसे मेरे विश्वास मे
राम लखन के सजग प्राण है राम भरत के पादत्राण है
राम मिलेंगे दर्श के प्यासे लोचन में...
राम मिलेंगे सबको संकटमोचन में....
कवि रूपचंद सोनी
घाटोंली झालावाड़