अश्रुधार भरी अँखियों में, कैसे दर्शन पाऊँ माँ,
मन मेरा संताप से भारी, कैसे मुस्का पाऊँ माँ।
अश्रुधार भरी अँखियों में, कैसे दर्शन पाऊँ माँ…॥
कदम-कदम पे बिछे हैं काँटे, राह में ऊँची खाई है,
दुख की बेड़ियाँ पाँव में पड़ती, किस विधि चलकर आऊँ माँ।
अश्रुधार भरी अँखियों में, कैसे दर्शन पाऊँ माँ…॥
सुख-दुख के इस भँवरजाल में, फँसी हुई मेरी नैय्या,
कभी डूबे, कभी उभरे, आज नहीं कोई खेवैया।
छूट गई पतवार भी हाथों से, पार कैसे जाऊँ माँ,
अश्रुधार भरी अँखियों में, कैसे दर्शन पाऊँ माँ…॥
पाप-पुण्य के फेर में फँसकर, मैंने सुध-बुध खोई माँ,
भीतर बैठी मेरी आत्मा, रोई है फ़ूट-फ़ूट रोई माँ।
बोल भी अब गले में अटके, आरती कैसे गाऊँ माँ,
अश्रुधार भरी अँखियों में, कैसे दर्शन पाऊँ माँ…॥
पाप-पुण्य का भेद बता दे, धर्म-कर्म का ज्ञान दे,
मेरे भीतर तू ही बसती, इतना मुझको भान दे।
फिर से मुझमें शक्ति जगा दे, फिर से नव-प्राण दे,
शिशु-सा गोद में खेल उठूँ, फिर बालक बन जाऊँ माँ।
किस विधि शब्द सजाकर बोलूँ, तुझको आज मनाऊँ माँ,
अश्रुधार भरी अँखियों में, कैसे दर्शन पाऊँ माँ…॥