मन चंचल चल राम शरण में

माया मरी ना मन मरा, मर मर गया शरीर ।
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर ॥

माया हैं दो भान्त की, देखो हो कर बजाई ।
एक मिलावे राम सों, एक नरक लेई जाए ॥

मन चंचल चल राम शरण में ।
हे राम हे राम हे राम हे राम ॥

राम ही तेरा जीवन साथी,
मित्र हितैषी सब दिन राती ।
दो दिन के हैं यह जग वाले,
हरी संग हम हैं जनम मरण में ॥

तुने जग में प्यार बढाया,
कितना सर पर भार उठाया ।
पग पग मुश्किल होगी रे पगले,
भाव सागर के पार तरन में ॥

कितने दिन हंस खेल लिया है,
सुख पाया दुःख झेल लिया है ।
मत जा रुक जा माया के संग,
डूब मरेगा कूप गहन में ॥
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