सम्हालो सम्हालो मुझे श्यामसुन्दर

सम्हालो-सम्हालो मुझे श्यामसुन्दर,
विषय वासना में कहीं घिर न जाऊँ,
हे सरसिज-नयन श्याम, ब्रज के दुलारे,
कहीं पाप के पंक में गिर न जाऊँ,


ओ तड़पता हूँ हर रोज मैं, ओ श्याम तेरे लिये,
मिलेगा तूँ कैसे मुझे, बहुत पाप मैंने किये,
बहुत पाप मैंने किये,
कुकर्मों का सागर, कहीं भर न जाये,
तुझे पाप अपने, मैं कैसे बताऊँ,
सम्हालो-सम्हालो मुझे श्यामसुन्दर,
विषय-वासना में कहीं घिर न जाऊँ,

बहुत इश्क़ तुझसे किया, हो दीदार कैसे बता,
हो.. दयाधाम होकर तेरी, ये कैसी है हठधर्मिता,
ये कैसी है हठधर्मिता,
ये दर्द-ए-मोहब्बत, जो तूँ दे रहा है,
बता दे मुझे, जाके किसको सुनाऊँ,
सम्हालो-सम्हालो मुझे श्यामसुन्दर,
विषय-वासना में कहीं घिर न जाऊँ,

हो.. माना कि तुम हो ख़ुदा, दिखते किसी को नहीं,
झूँठे ! अवध याद कर, ब्रज में क्या घूमे नहीं,
है तेरे दरश बिन, ये जीवन अधूरा,
ये दर्दे-ए-बयाँ श्याम, किसको सुनाऊँ,
सम्हालो-सम्हालो मुझे श्यामसुन्दर,
विषय-वासना में कहीं घिर न जाऊँ,

हे सरसिज-नयन श्याम, ब्रज के दुलारे,
कहीं पाप के पंक में गिर न जाऊँ,
विषय-वासना में कहीं घिर न जाऊँ,
कहीं पाप के पंक में गिर न जाऊँ,
विषय-वासना में कहीं घिर न जाऊँ,

गीत रचना- अशोक कुमार खरे
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