याद क्यों न आये गई क्यों न मुझे रुलायेगी,
जब तक जियुगा ये अखियां नीर बहाये गी,
याद क्यों ना आएगी....
बनके मुसाफिर मारा मारा फिर,
मंजिले मिली न रास्ता मिला,
अपनों के चकर में ऐसा फसा,
मेरी मजबूरियों पे जग ये हसा,
मुझको क्या पता था दुनिया एक दिन भुलाये गी,
जब तक जियुगा ये अखियां नीर बहाये गी,
याद क्यों ना आएगी....
हार के मैं आखर बिखर के गिरा,
देखा बगल में मेरे तू था खड़ा,
अब क्या ज़माने की परवाह मुझे,
सब कुछ मिला है मुझे पाके तुझे,
तेरे होते अब क्या बाबा दुनिया मुझे डारये गी,
जब तक जियुगा ये अखियां नीर बहाये गी,
याद क्यों ना आएगी....
भूले से भी ना भूल पाउगा मैं,
जब तक जियुगा यही गाऊगा,
मैं श्याम कहे जो तेरा साथ मिला,
मुझको भी एक दीना नाथ मिला,
जिस दिन मुझसे तू रूठा तो सांसे मेरी रुक जाए गी,
जब तक जियुगा ये अखियां नीर बहाये गी,
याद क्यों ना आएगी....