मों सम कौन पतित मोरे कान्हा,
बिषय भोग रति, प्रभु बिसिरायो,
भयो माया मोह बसित मोरे कान्हा,
मों सम कौन पतित मोरे कान्हा.....
राग द्वेष सब ब्याप्यो मोहें,
कियो मिथ्या जगत भ्रमित मोरे कान्हा,
मों सम कौन पतित मोरे कान्हा......
पञ्च तत्व तनु मिलि जइहैं इक दिन,
भयो मन आज ब्यथित मोरे कान्हा,
मों सम कौन पतित मोरे कान्हा.....
प्रभु शरण आय कैसे नयन मिलाऊँ,
लियो ह्रदय आज द्रवित मोरे कान्हा,
मों सम कौन पतित मोरे कान्हा.....
अब केहि बिधि नाथ करौं मैं बन्दन,
जाऊँ मैं तोसे उऋण मोरे कान्हा,
मो सम कौन पतित मोरे कान्ह....
आभार: ज्योति नारायण पाठक