मालिक है तू मेरा और नोकर मैं हु तेरा,
अब हाथ मेरे सिर पर धर,
चाहे जितनी तनखा पर दूर ना चरणों से कर,
तुझसे ना मांगू तो बाबा और कहा जाऊ,
तेरे होते किसी और से क्यों मैं मांगके खाऊ,
सुबह शाम तेरी करू चाकरी क्यों मैं भटकू दर दर,
चाहे जितनी दे तनखा पर दूर न चरणों से कर,
नोकर हु मैं तेरा..........
कुछ सालो के बाद तो बाबा मिलता है परमोशन,
पर अब तक बड़ी न तनखा बड़ने को है टेंशन,
कर कर सेवा उम्र बीत गई अब तो ज़रा दया कर,
चाहे जितनी दे तनखा पर दूर न चरणों से कर,
नोकर हु मैं तेरा..........
उठा के अब परिवार का भोज कमर टूट गई सारी
महंगाई भी राम सिंह अब ले रही जान हमारी,
सुन ले अब तो सेठ संवारा थक गया धीरज धर कर,
चाहे जितनी दे तनखा पर दूर न चरणों से कर,
नोकर हु मैं तेरा..........