कहा छुप गया तू कहा तुझको धुंडु ओ मेरे मन के मीत,
मन वीणा की टूटी है तारे विखरा मेरा संगीत,
ओ मेरे मन के मीत,
क्या थी वो राते जिन रातो में गीत तुम्हरे गाये थे,
सात सुरो की खुशबु से उन गीतों को महकाये थे ॥
ना जी सकूगा न मर सकूगा मेरी रह गई अधूरी प्रीत,
ओ मेरे मन के मीत,
चुन चुन भावो की कलियों से तुझको कभी सजाया,
बिन बोले ही प्रीतम प्यारे कभी दिल का दर्द सुनाया ॥
धुंटने लगा है गम प्राणो का ये सवासे भी जाए भी,
ओ मेरे मन के मीत,
गम देने वाले दर्द ये दिल का मुश्किल हुआ अब सेहना,
दिल की दिल में रह गई मेरे अब तुमसे नहीं कुछ कहना ॥
देखेगी दुनिया महौब्त उनकी हारी आ गई जीत,
ओ मेरे मन के मीत,