पियो रे नाम रस है कोई प्यासा,
हरी के मिलन की है जिसे आशा,
पियो रे नाम रस है,
नाम महान रस पीना है तो होश गवा कर पी,
छुप छुप कर पीना ठीक नही सत्संग में आकर पी,
खुद पी लेना इतना नही ओरो को पिला कर पी,
आनंद पीना है तो प्रभु से नैन लगा कर पी,
पियो रे नाम रस है.......
नाम महारास पीने वाला जग में अमर हो जाता,
मरना है सबने लेकिन वो नाम अम्र कर जाता है,
नाम मुशीबत में जपे वालो को कैसे बचाता है,
मीरा बाई का ज़हर प्याला अमिरत बन जाता है,
पियो रे नाम रस है......
राणा में मीरा की खातिर ज़हर प्याला मंगवाया,
ये कह कर ज़हर प्याला मीरा को था पौनचाया,
ये ज़हर पियो फिर बेशक अपने गिरधर को याद करो,
कोई न तुझे बचाए गा चाहे जिस से फरयाद करो,
पियो रे नाम रस है..........
अपने हाथो में मीरा ने वो ज़हर प्याला थाम लिया,
होठो पे लगाया प्याले को दिल में गिरधर का नाम लिया,
घट घट करके मीरा ने वो ज़हर प्याला पी डाला,
तू तो नाम महान रस पी ले होक मनवा मतवाला,
पियो रे नाम रस है........
प्रहलाद भक्त ने खुद पीया ओरो को पिलाया भर भर के,
हार गया हर्नाकाश भी यतन हजारो कर कर के,
पहाड़ो से गिराया तब न मरा फिर तन में चुभाये थे कांटे,
दुःख में भी फिर हरी भक्त ने नाम प्याले ही भानटे,
पियो रे नाम रस है.............
ना पाक इरादे वाली होलिका पल भर में ही ख़ाक बनी,
प्रलाद जलाना चाहती थी लेकिन खुद जल कर राख बनी,
प्रलाद भगत ने लाल लोहे का खाम्ब देखा तो नही डोला,
मौत सामने देखि तो मुह खोला तो ये बोला.
पियो रे नाम रस है....
भरी सबा ने दोपरती के दुर्शासन चीर उतार रहा,
उस विचारी अबला को बे मौत समज कर मार रहा,
हरी नाम भरोसे द्रोपती ने अपना सर्वस उतार दिया,
प्रभु चीर भेजते नही हारे लेकिन दुर्शाशन हार गया,
पियो रे नाम रस है........
इसी नाम ने जल के भीतर घज का फंद छुड़ाया था,
इसी नाम को देवी ऋषि नारद ने निशदिन दया' था,
इसी नाम को शिव शंकर ने झूम झूम कर गया था,
इसी नाम के बल पर शेष ने पृथ्वी बार उठाया था,
पियो रे नाम रस है........